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कविता

निर्झर झरेंगे

रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’


तोड़नी होंगी
दमन की श्रृंखलाएँ
बस तभी
आश्वस्ति के निर्झर झरेंगे।

कर रही बारूद तांडव
हर दिशा अब काँपती है
लौह की प्राचीर में छिपकर
व्यवस्था झाँकती है
अब अगर ये दैत्य
हिंसा के
अहिंसा से मरेंगे
बस तभी
आश्वस्ति के निर्झर झरेंगे।

लिख रही तकदीर
बूढ़ी रोशनाई
तरुण वय की
घन तिमिर है
जेल अब
संभावनाओं के वलय की
ये तमस के दूत जब
निष्प्राण हो-होकर गिरेंगे
बस तभी
आश्वस्ति के निर्झर झरेंगे

हो रहा धृतराष्ट्र को
अमरत्व का भ्रम
एक झूठा
क्रूर सत्ता धूर्तता का
आज गठबंधन अनूठा
मृत्यु
पत्रों पर हमीं जब
स्वयं हस्ताक्षर करेंगे
बस तभी
आश्वस्ति के निर्झर झरेंगे।


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